बच्चो को संस्कार कैसे दे – Bachho Ko Sanskar Kaise De in Hindi

Bachho Ko Sanskar Kaise De आज अधिकांश माता – पिता एवं अभिभावक अपने कार्य में इतना व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है । परिस्थितिवश समय का न होना एक अलग बात है , लेकिन अपने बच्चों के निर्माण के प्रति लापरवाही का भाव दूसरी बात है , जो चिंता का विषय है ।
बच्चो को संस्कार कैसे दे – Bachho Ko Sanskar Kaise De in Hindi
बच्चों में जिन संस्कारों की हम अपेक्षा रखते हैं , आगे चलकर उन्हें परिवार समाज के उपयोगी सदस्य के रूप में जैसा हम देखना चाहते हैं — यह सब अनायास ही नहीं होता । उसके लिए उपयुक्त वातावरण देना होता है , इस दिशा में कुछ सचेष्ट प्रयास करने होते हैं ।
अब यह हमारे हाथ में है कि हम फूलों से सजा सुंदर बगीचा चाहते हैं या जंगल में बेतरतीब ढंग से उग रहे वृक्ष – वनस्पतियों से भरे झाड़ – झंखाड़ । इस दिशा में कुछ प्रयास इस तरह किए जा सकते हैं
सोशल मीडिया के उपयोग पर ध्यान रखें
आज के समय का यह सच है कि आज हम सूचना क्रांति के युग में जी रहे हैं , जिसमें स्मार्टफोन एवं सोशल मीडिया ने जैसे बच्चों का बचपन छीन – सा लिया है ।
बच्चे क्या बड़े भी इसके शिकार हैं , जो इसमें खोए दिखते हैं । ऐसे में फिर बाल निर्माण का कार्य चुनौतीपूर्ण हो जाता है , लेकिन जो भी हो माता – पिता को बच्चों के लिए समय निकालने की जरूरत है । अबोध बच्चों को माता – पिता के संरक्षण एवं मार्गदर्शन की अत्यंत आवश्यकता है ।
घर के अभिभावक अपनी सजगता एवं समझदारी के आधार पर गीली मिट्टी के लौंदे समान शिशु मन को मनचाहा आकार दे सकते हैं । बच्चों के समग्र विकास के लिए बौद्धिक ही नहीं , भावनात्मक एवं आध्यात्मिक विकास के सरंजाम जुटा सकते हैं ।
परिवार में उचित वातावरण दे
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण है माता – पिता का आपसी आचरण – व्यवहार एवं घर का वातावरण , जिसके माध्यम से बच्चा सहज ही जीवन विद्या ग्रहण करता है , अच्छी और बुरी बातें सीखता है । यदि इनमें श्रेष्ठता एवं उदारता का समावेश है तो बच्चों का बेहतरीन विकास होता है और यदि हम निकृष्ट एवं तनाव भरा वातावरण देते हैं तो बालक का विकास कुंठित एवं असामान्य होता है , जिसका खामियाजा संतान जीवनपर्यंत भुगतने के लिए अभिशप्त होती है ।
परिवारजनों की समझदारी पीढ़ियों को इस अभिशाप से मुक्त रखने में सहायता कर सकती है । यह कार्य विद्यालयों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता , जहाँ प्राय : न तो ऐसा वातावरण होता है और न ही ऐसा मार्गदर्शन । यदि कहीं ऐसा कुछ उपलब्ध भी है तो इसे आज के युग में एक वरदान ही माना जाएगा । परिवार में आस्तिकता का वातावरण महत्त्वपूर्ण है ।
सुबह – शाम पूजा – पाठ , आरती आदि का नित्य क्रम एक दिव्य वातावरण तैयार करता है । यदि ये क्रियाएँ सामूहिक हों तो और भी अच्छा है ।, जो परिवेश की शुद्धि के साथ वातावरण में सात्त्विकता का समावेश करता है । साथ ही यह प्रतिभागियों में संस्कारों के रोपण की एक ऋषिप्रणीत समर्थ विधा है । इसके साथ उपयुक्त अवसर पर किए गए संस्कारों का अपना महत्त्व है । इनमें घर – परिवार के सदस्यों के साथ पड़ोस के बच्चों को भी शामिल किया जा सकता है ।
अच्छी पुस्तकों के स्वाध्याय के लिए करें प्रेरित
बच्चों को ऊलजलूल महँगे उपहार देने के बजाय यदि उनकी आयु एवं रुचि के हिसाब से ज्ञानवर्द्धक एवं श्रेष्ठ साहित्य को भेंट करने का चलन चलाया जाए तो यह उनकी संस्कारगत शिक्षा एवं बौद्धिक विकास के संदर्भ में एक समझदारी वाला कदम होगा ।
महापुरुषों का जीवन श्रेष्ठ पुस्तकों के साये में ही पुष्पित – पल्लवित हुआ है । इसके लिए अभिभावकों का स्वयं भी अध्ययनशील होना आवश्यक है , जिससे कि वे बच्चों को उनकी आवश्यकता के अनुरूप उपयुक्त पुस्तक सुझा सकें । घर – परिवार में बड़े – बुजुर्ग नित्य साहित्य के कुछ अंश पढ़कर चर्चा कर सकते हैं और रोचक कथाओं का श्रवण करा सकते हैं , जिसमें बच्चे प्रायः खासी रुचि लेते हैं । नैतिक शिक्षा की पुस्तकें इस संदर्भ में बहुत उपयोगी साबित हो सकती हैं ।
अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ें बालमन –
अपने घर – गाँव , शहर – कस्बे एवं देश के ऐतिहासिक , सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व के स्थलों का भ्रमण एक अनुपम प्रयोग सिद्ध हो सकता है ।
नए परिवेश के नवीन भूगोल , – प्रकृति एवं समाज से जहाँ उनकी जिज्ञासा की कोंपलें फूटती : हैं , ज्ञानवर्द्धन होता है , बुद्धि के कपाट खुलते हैं , तो वहीं अपनी संस्कृति से भी गहरा परिचय हो जाता है ।
अपनी – सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने व इसके गौरवपूर्ण इतिहास से : परिचय अनायास ही श्रेष्ठ नागरिक गढ़ने का प्रयोजन पूरा – करता है ।
अपने समाज – संस्कृति एवं राष्ट्र के प्रति गौरव के भाव का जागरण एवं विकास प्रकारांतर में संस्कारगत पीढ़ी के निर्माण की दिशा में उठाया गया एक उपयोगी कदम माना • जाएगा ।
इन सब कार्यों एवं प्रयोगों के लिए समय निकालना आवश्यक है । यह एक ऐसी खेती है , जिसका फल सुसंस्कारित पीढ़ी के रूप में जीवनपर्यंत मिलता रहेगा ।
बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ संस्कारवान भी बनाना है – यह माता – पिता एवं अभिभावकों की प्राथमिकता में होना चाहिए ।
इसे भाग्य के भरोसे या परिस्थितियों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता । इसके लिए सजग एवं सुनियोजित प्रयास की आवश्यकता है , जो हमारा पावन कर्त्तव्य भी है और दायित्व भी ।
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