
लक्ष्य कैसे निर्धारित करे। How to set a goal In Hindi

लक्ष्य कैसे निर्धारित करे जीवन में सही लक्ष्य का निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण पहलू है , जिसके अभाव में जीवन एक दिशाहीन नैया की भाँति संसार सागर की लहरों के बीच हिचकोले खाता रहता है , लेकिन पहुँचता कहीं नहीं । प्राय : लोकचलन , घर – परिवार के बड़े – बुजुर्गों की इच्छा Goal Setting के प्रमुख कारक रहते हैं । इनमें कुछ बुरा भी नहीं , यदि यह
सब अपनी इच्छा एवं अंतःप्रेरणा के अनुरूप होता हो । अन्यथा देखा – देखी या दबाव में अपनाया गया जीवन लक्ष्य उस सार्थकता का बोध नहीं दे पाता , जिसका इनसान इस सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के नाते हकदार है । सही लक्ष्य के अभाव में जीवन उपलब्धियों से भरा होने के बावजूद , उस सुकून से रोता रह जाता है , जिसकी वह आकांक्षा रखता है ।
लक्ष्य कैसे निर्धारित करे। How to set a goal In Hindi
सब कुछ होने के बावजूद व्यक्ति स्वयं को पूर्णता के बोध से कोसों दूर पाता है । जीवन लक्ष्य का निर्धारण बहुत सरल कार्य भी नहीं है । बहुत सौभाग्यशाली हैं वे लोग जिनका जीवन लक्ष्य स्पष्ट है , अन्यथा इनसान भ्रामक लक्ष्यों में खोया मन को बहलाता फिरता है , उसका पूरा जीवन जैसे मृगमरीचिका के पीछे भटकते बीत जाता है और जीवन की विदाई के पलों का एक दु : खद आह के साथ त्रासद अंत होता है । अत : जीवन लक्ष्य में हो रही चूक का समय रहते परिमार्जन किया जाए , इसका पुनर्निधारण किया जाए , तो इसे समझदारी वाला कदम माना जाएगा ।
रुचि के अनुरूप लक्ष्य – Goal setting in Hindi
लक्ष्य रुचि के अनुरूप हो तो जीवन सरल – सहज बन जाता है । सर्वविदित है कि रुचिपूर्ण कार्य पर मन स्वतः ही एकाग्र हो जाता है और कार्य में मन लगता है । रुचि के कार्य सामने होने पर व्यक्ति टालमटोल नहीं करता , उनको प्राथमिकता के आधार पर निपटाता है व पूरा करता है । यदि कार्य रुचि का न हो तो व्यक्ति उसे बेगार की तरह ढोता फिरता है और उसके लिए समय के अभाव का रोना रोता रहता है । लक्ष्य का रुचि के अनुरूप होना एक बहुत बड़ा कारक है , जो जीवन को सरल एवं सुरुचिपूर्ण बनाता है ।
मौलिक प्रतिभा पर आधारित लक्ष्य –
लक्ष्य का अपनी क्षमता , प्रतिभा एवं योग्यता के अनुरूप होना भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है । अपनी नैसर्गिक प्रतिभा एवं योग्यता के अनुरूप यदि लक्ष्य का निर्धारण हो तो कार्य में सफलता एवं सिद्धि का समय पर मिलना सुनिश्चित हो जाता है अन्यथा धारा के विपरीत तैरने जैसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है । हालाँकि यदि हमारी रुचि हो तो अपनी मनचाही क्षमता का विकास अपने श्रम एवं पुरुषार्थ के आधार पर भी किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए आवश्यक धैर्य , जीवट एवं अध्यवसाय का होना अनिवार्य है , जो सबके लिए संभव नहीं होता और जिसमें प्राय : चूक हो जाती है । सामाजिक रूप से
उपयोगी और लाभकारी लक्ष्य
लक्ष्य का उपयोगी होना भी आवश्यक है , जिससे न केवल स्वयं का जीवन सँवरता हो , समृद्ध होता हो , बल्कि समाज का भी हित सधता हो । दूसरों के शोषण एवं समाज के अहित पर आधारित आत्मकेंद्रित लक्ष्य किसी भी रूप में वरेण्य नहीं माना जा सकता । जीवन लक्ष्य का श्रेष्ठ , उदात्त : एवं महान होना आवश्यक है , इसी के आधार पर भावनात्मक विकास , चित्त शुद्धि एवं आत्मविकास के बड़े उद्देश्य पूरे होते हैं और जीवन बाहरी सफलता के साथ आंतरिक शांति एवं सार्थकता की अनुभूति को प्राप्त कर पाता है ।
स्वाभाव के अनुरूप लक्ष्य
कहने की आवश्यकता नहीं कि लक्ष्य का अपनी मूल प्रकृति एवं स्वभाव के अनुरूप होना अभीष्ट है । यह गीता में कहे स्वधर्म की खोज जैसा है , जिसके लिए स्वयं के प्रयास के साथ कुशल मार्गदर्शक की आवश्यकता भी होती है । अपने दम पर खोज करते – करते इसमें बहुत समय लग सकता है , लेकिन किसी सक्षम – समर्थ का मार्गदर्शन एवं दिशा बोध इस कार्य को सरल बना देता है ।
अत : ऐसे मानव प्रकृति के मर्मज्ञ व्यक्तियों का सहयोग लिया जा सकता है । अपना नियमित आत्मनिरीक्षण इसका पहला चरण है । तीव्र अभीप्सा इसका दूसरा चरण है , जिसके आधार पर समय पर उचित मार्गदर्शन का मिलना भी सुनिश्चित हो जाता है ।
लक्ष्य को चुनौती पूर्ण होना
लक्ष्य का चुनौतीपूर्ण होना अभीष्ट – जीवन लक्ष्य का चुनौतीपूर्ण होना भी एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है । यदि लक्ष्य पहुँच के अंदर है या बहुत सरल है तो इसको प्राप्त करने में कोई विशेष पुरुषार्थ नहीं करना पड़ता । ऐसे में व्यक्ति पथ के रोमांच से वंचित रह जाता है और साथ ही जीवन की श्रेष्ठतम संभावनाएँ भी प्रकट नहीं हो पातीं । लक्ष्य का उच्चतम आदर्शों के अनुरूप होना एक बहुत बड़ा कदम है । इतिहास साक्षी है कि ऐसे ही जीवन लक्ष्य की साध लिए व्यक्ति जीवन की दिव्यतम संभावनाओं को साकार करने में सक्षम हुए और जग का वास्तविक हित कर पाए हैं । यह मार्ग सबके लिए खुला है ।
लक्ष्य का स्पष्ट होना आवश्यक है
निस्संदेह जीवन लक्ष्य आदर्श के अनुरूप हो , जिससे अंतर्निहित क्षमताओं का प्रकटीकरण संभव हो सके और जीवन का विकास सुनिश्चित हो सके । इसके लिए इसका स्पष्ट एवं व्यावहारिक होना भी आवश्यक है , जिसको हम नियमित रूप से कार्यरूप में परिणत कर सकें तथा जिसकी प्रगति का हम नियमित अंतराल पर मापन कर सकें
अकल्पनीय लक्ष्य निर्धारित न करे
जिसका कोई व्यावहारिक स्वरूप न हो , जिसकी प्रगति का कोई पैमाना न हो , ऐसा कपोलकल्पित लक्ष्य जीवन को वह आवश्यक उत्साह एवं प्रेरणा नहीं दे सकता , जो जीवन के रणक्षेत्र में झंझावातों के बीच आगे बढ़ने में सहायक होते हैं । उपरोक्त आधार पर तय लक्ष्य जीवन को एक नया अर्थ देता है , नित्यप्रति की चुनौतियों को अवसर में बदलने का साहस देता है , अपना श्रेष्ठ स्वरूप प्रकट होने का अवसर देता है , व्यक्ति के आत्मिक विकास का आधार बनता है और अपने भाग्य – विधाता आप होने का विश्वास जगाता है । ऐसा जीवन लक्ष्य अंततः व्यक्तित्व की चरम एवं परम संभावनाओं को साकार करने का मार्ग प्रशस्त करता है । ऐसा ही जीवन लक्ष्य हमें भी निर्धारित करना चाहिए ।
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