
लीडर कैसे बने ? पूरी जानकारी

Leader Kaise Bane लीडरशिप या नेतृत्व एक ऐसा गुण है , जिसकी जीवन के किसी – न – किसी मोड़ पर सबको आवश्यकता पड़ती है । जीवन में चाहे – अनचाहे ऐसे पल आ जाते हैं , जब आपको अपने क्षेत्र विशेष में समूह को किसी लक्षित मंजिल की ओर लीड करने का मौका मिलता है ।
लीडर कैसे बने ?
नेतृत्व के लिए आवश्यक कई गुणों में सबसे महत्त्वपूर्ण है – सेल्फ लीडरशिप , जो प्रभावी लीडरशिप का आधार है । स्वयं पर न्यूनतम पकड़ व विश्वास को सुनिश्चित करता है , लीडरशिप के प्रति सकारात्मक भाव जगाता है तथा टीम को अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है ।
सेल्फ लीडरशिप के गुण को अपनाये
अपनी शक्ति दुर्बलताओं की समझ सेल्फ लीडरशिप का पहला चरण है । – इसी आधार पर अपनी यथास्थति का बोध होता है आत्मसुधार एवं निर्माण का कार्यक्रम तय होता है । स्व जागरूकता से ही हमारा अपनी क्षमता एवं मौलिक प्रतिभा – से परिचय होता है व हमें स्पष्ट होता है कि किन – दुर्बलताओं को अपनी शक्ति में बदलना है व किन शक्तियों को और धार देनी है
अपना लक्ष्य खुद निर्धारित करे
अपनी क्षमताओं के बोध के आधार पर निर्धारित लक्ष्य व्यक्ति को सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ाता है , विशिष्ट उपलब्धियों के साथ जीवन में सार्थकता का बोध देता है तथा आत्मविश्वास को बढ़ाता है । जीवनलक्ष्य की स्पष्टता होने के साथ व्यक्तित्व का समग्र विकास सुनिश्चित होता है , जो आगे चलकर सशक्त नेतृत्व का सशक्त व सबल आधार बनता है ।
सकरात्मक विचारो का चिंतन करे
मन के नकारात्मक भाव जीवन में वैसे ही विचारों की बाढ़ ला देते हैं व स्व नेतृत्व की कसौटी को पग – पग पर चुनौती देते रहते हैं । इनके स्थान पर अनवरत रूप से सकारात्मक विचारों का चिंतन , मनन एवं प्रतिस्थापन सकारात्मक मनोभूमि का निर्माण करता है । इस दिशा में छोटी – छोटी सफलताएँ सेल्फ लीडरशिप के भाव को पुष्ट एवं सशक्त करती हैं । व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा का पुंज बनता चला जाता है ।
सकरात्मक विचारो वाली आस्था में विश्वास करे
सत्य संवेदना को धारण करना सेल्फ लीडरशिप का केंद्रीय तत्त्व है , जिसके मूल में गहन आत्मश्रद्धा एवं ईश्वरीय विश्वास निहित होता है । यही संवेदना सचाई एवं अच्छाई की शक्ति में अडिग विश्वास जगाती है तथा तमाम विषमताओं एवं प्रतिकूलताओं के बावजूद जीवन में सकारात्मक आस्था का दीप जलाए रखती है व आत्मकल्याण एवं लोकहित के पथ पर अग्रसर रखती है ।
जिज्ञासा एवं उदार सोच –
जीवन के प्रति जिज्ञासा का भाव व्यक्ति को हर पल एवं हर परिस्थिति से सीखने को प्रेरित करता है तथा उसका व्यक्तित्व नित नए ज्ञान के साथ आलोकित होता है । साथ ही खुलेपन एवं उदारता का भाव व्यक्तित्व को व्यापकता देता है एवं उसे सर्वस्वीकार्य बनाता है । ऐसे में जीवन की चुनौतियाँ आत्मविकास का अवसर बनती हैं व व्यक्ति तमाम प्रतिकूलताओं के बीच निर्धारित गति से अभीष्ट लक्ष्य की ओर गतिशील रहता है ।
ईमानदारी एवं जिम्मेदारी –
ये व्यक्ति को स्व अनुशासित करते हैं , उसके आत्मविश्वास को जगाते हैं तथा उसके व्यक्तित्व में विश्वसनीयता एवं प्रामाणिकता को विकसित करते हैं । कहावत भी प्रसिद्ध है कि ईमानदार व्यक्ति एक ऐसा हीरा है , जो हजार मनकों के बीच अलग चमकता है । ईमानदारी जहाँ आंतरिक शांति एवं आत्मबल का आधार बनती है , तो वहीं जिम्मेदारी कर्त्तव्यपालन का संतोष देती है और बृहत्तर जिम्मेदारियों की पात्रता को विकसित करती है ।
असफलताओ से विचलित्त न हो
बार – बार की असफलताओं , तमाम प्रतिकूलताओं एवं दबावों के बीच जीवनलक्ष्य की ओर बढ़ते रहना अपार साहस एवं धैर्य की माँग करता है । ये गुण व्यक्ति के स्व – नेतृत्व को सबल आधार देते हैं तथा साथ ही जमीनी हकीकत की समझ व्यक्ति को विनम्र बनाती है व प्रभावी नेतृत्व के लिए तैयार करती है । जबकि अधीर मन छोटे – छोटे अवरोधों से ही विचलित हो जाता है तथा व्यक्ति विषम चुनौतियों के सामने नहीं टिक पाता ।
विषय की अच्छी पकड़ और समझ जरुरी है
यह स्व • नेतृत्व का एक ठोस आधार है । कहने की आवश्यकता नहीं कि अपने विषय का ज्ञान व्यक्ति में आत्मविश्वास को विकसित करता है तथा उसकी प्रतिभा को धार देता है । साथ ही आज के तकनीकी युग में तकनीकी कौशल व्यक्ति को आत्मनिर्भर • बनाता है , उसकी कार्यकुशलता को सुनिश्चित करता है तथा • आधुनिक पेशेवर युग में जमाने के साथ कदमताल करने की क्षमता देता है ।
वर्तमान का उपयोग करना सीखे
ह समझ कि आज हम जो कुछ भी हैं , वह हमारे पिछले विचार एवं कर्मों की श्रृंखला का परिणाम है – यह विश्वास जाग्रत करता है एवं सूझ देता है कि हम जो भी कुछ भविष्य में बनना चाहते हैं या करना चाहते हैं , उसे अपने विचारों एवं कृत्यों के आधार पर संभव कर सकते हैं , अर्थात अपने भाग्य विधान की चाबी हमारे ही हाथों में है ।
हमारे वर्तमान का हर विचार , कृत्य एवं संकल्प वह आधार है , जो भविष्य के नए अवसरों एवं सफलताओं का सृजन कर रहा है । इस तरह वर्तमान का श्रेष्ठतम उपयोग स्व – नेतृत्व का एक महत्त्वपूर्ण कारक है , जो समय आने पर प्रभावी नेतृत्व को संभव बनाता है ।
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