
Self Respect Kaise Badhaye – सेल्फ रेस्पेक्ट कैसे बढ़ाये

Self Respect Kaise Badhaye आत्मसम्मान , व्यक्ति का अपने स्व के प्रति मूल्यांकन का भाव है कि व्यक्ति स्वयं को क्या मूल्य देता है या अपना क्या मूल्य आँकता है , जो उसके स्वयं के प्रति विश्वास पर एवं उसकी भावनात्मक अवस्था पर निर्भर करता है ।
Self Respect Kaise Badhaye – सेल्फ रेस्पेक्ट कैसे बढ़ाये
वह स्वयं को जीवन की सामान्य सुख सुविधाओं एवं अधिकारों के योग्य नहीं समझता और निर्णय लेने में भी वह कठिनाई अनुभव करता है । नकारात्मक चिंतन से ग्रस्त ऐसे व्यक्ति को लगता है कि बुरी चीजें प्रायः उसके साथ ही घटित होती हैं , वह अच्छी चीजों के लिए नहीं बना हुआ है ।
वह अतीत में विचरण करता रहता है और अपनी असफलताओं एवं नकारात्मक अनुभवों को ही गिनता रहता है । ऐसे में वह अत्यधिक चिंतन का शिकार हो जाता है ।
अपनी अक्षमता , निरर्थकता के भाव से वह आक्रांत रहता है कि कोई उसे नहीं चाहता , कोई प्यार नहीं करता , कोई उसे स्वीकार नहीं करता । निस्संदेह एक स्वस्थ , संतुलित एवं सफल जीवन जीने के लिए आत्मसम्मान का उचित विकास आवश्यक होता है ।
यदि व्यक्ति किसी कारणवश आत्मसम्मान की न्यूनता से आक्रांत है , तो वह अपने स्तर पर भी इसका उपचार कर सकता है , जिसे निम्न तरीकों से बढ़ाया जा सकता है । आत्मसम्मान विकसित करने के लिए उन दुराग्रहों से जूझें , उनकी तह तक जाएँ , जो अपना मूल्य गिराते हों ।
स्वयं को नीचा दिखाना बंद करे
विचार करें , मन में ऐसे कौन – कौन से दुराग्रह हैं , जो स्व के भाव को नकारात्मक बनाते हैं , मन में ग्लानि का भाव जगाते हैं , स्वयं को नीचा दिखाते हैं । ऐसी आदतों , ऐसे कार्यों की सूची बनाएँ , जो आत्मसम्मान के भाव को बदरंग कर रहे हों ।
आजकल स्मार्टफोन इस संदर्भ में एक खलनायक की भूमिका में उभरकर आ रहा है , जो ऐसे कृत्यों के लिए उकसाता रहता है , जो बाद में व्यक्ति के लिए चिंता एवं पश्चात्ताप का कारण बनते हैं , उसके आत्मसम्मान के भाव को क्षीण करते हैं । इसकी माया से सावधान रहें ।
नकरात्मक वाणी से बचे
आंतरिक आलोचक को शांत करें । अनावश्यक आलोचना करने वाली मन की नकारात्मक वाणी को शांत करें । इसे समझाएँ – बुझाएँ । आंतरिक नकारात्मक ध्वनि प्रायः अपने ही पूर्व में किए गए कार्यों एवं घटित घटनाओं पर आधारित होती है ।
किसी आवेग – आवेश , अज्ञानता या परिस्थितिजन्य दबाव के तहत घटित ऐसे आंतरिक नासूर को भरने में समय लगता है , इसको ठीक होने दें । इसके लिए स्वस्थ – संतुलित जीवनचर्या को अपनाएँ एवं सात्त्विक विचार – भाव से भरे वातावरण में रहने का प्रयास करें । स्वाध्याय – सत्संग , ध्यान प्रार्थना के माध्यम से यह कार्य बखूबी संपन्न हो सकता है ।
गहन आत्मनिरीक्षण के साथ इसकी जड़ों तक उतरें , इनको समझकर इसका आत्यंतिक उपचार करने का प्रयास करें ।
वर्तमान में जिए
अपने नकारात्मक विश्वासों को पहचानें तथा इनको चुनौती दें । अपने बारे में सकारात्मक चीजों को पहचानें , इनको प्रोत्साहन दें । वर्तमान में जिएँ , अपने विचार एवं भावों के प्रति जागरूक रहें , ध्यान का अभ्यास करें और स्वयं से जुड़े रहें । अपने अंदर के आलोचक को , जो दोहरे मानदंड रखता हो , गहरा दफना दें ।
अपने प्रति कठोर और दुसरो के प्रति उदार न बने
स्वयं के प्रति अनावश्यक रूप से कठोर तथा दूसरों के प्रति अतिशय उदार न बनें । स्वयं को भी थोड़ा स्थान दें । आंतरिक आलोचक को थोड़ा प्रशिक्षित करें । मन की कार्यशैली को समझने का प्रयास करें । कोई भी कार्य समय लेता है , मन के अवचेतन एवं अचेतन स्वरूप को समझें । मन के साथ निपटने में अत्यधिक कठोरता नकारात्मक परिणाम भी ला सकती है । इससे समझदारी , सूझ एवं धैर्य के साथ निपटें ।
स्वयं को शाबाशी दे
छोटी – छोटी उपलब्धियों पर स्वयं को शाबाशी दें तथा अपने जीवन को आनंद के साथ जिएँ । अपना श्रेष्ठतम प्रयास करें , लेकिन अपनी अकुशलता पर स्वयं को न कोसें ।
खुद को कोसना बंद करे
राह में मानवीय त्रुटियाँ संभव हैं , जो होंगी , लेकिन इसके लिए स्वयं को सतत कोसते रहने से सारी ऊर्जा कहीं गैर- -उत्पादक परिणाम में लग जाती है ।
ऐसे में घटना या दुर्घटना या चूक से सबक लें । इसे मोटे अक्षरों में लिखें । बार – बार याद करें। दोबारा गलती को करें , तो वह अलग स्तर की हो ।
ऐसा करते – करते एक दिन हम आत्मसम्मान के भाव से भर जाएँगे ; क्योंकि छोटी – छोटी सफलताएँ आपके आत्मसम्मान को बढ़ा रही होंगी तथा एक दिन विजयी मुस्कान आपके साथ होगी ।
एक खिलाड़ी की तरह हम तब हार – जीत के बीच अपना कौशल निखारते हुए आत्मसम्मान को समृद्ध कर रहे होंगे । मान कर चलें कि यहाँ कोई भी पूर्ण नहीं , हर कोई गलतियाँ करता ही है । आप भी इसके अपवाद नहीं । उस पर ध्यान केंद्रित करें , जिसे आप बदल सकते हों ।+
अच्छे लोगो के साथ समय बिताये
उन लोगों के साथ समय बिताएँ , जो आपके बारे में अच्छी राय रखते हों तथा आपको बेहतर अनुभव कराते हों , जो आपको श्रेष्ठतम करने के लिए प्रेरित करते हों तथा आपके आत्मसम्मान के भाव को जगाते हों । यदि ऐसा संग – साथ उपलब्ध न हो तो महापुरुषों की पुस्तकों का अध्ययन किया जा सकता है । इसके लिए उनका स्वाध्याय करें , जो संघर्ष द्वारा अपने क्षेत्र में उत्कर्ष के शिखर तक पहुँचे ।
नीचा दिखाने वाले लोगो से दूर रहे
उन लोगों से दूर ही रहें , जो आपको अपने ईर्ष्या – द्वेष तथा कुंठाओं के कारण कोसते हों या नीचा दिखाने का प्रयास करते हों , नकारात्मकता का संचार करते हों और आत्मसम्मान में गिरावट का कारण बनते हों । ऐसे लोगों से बिना अपना आंतरिक संतुलन खोए निपटने की कला सीखें ।
खुद के संघर्ष की कहानी लिखे
वास्तव में बुराई के प्रति उपेक्षा की दृष्टि एक स्तर तक उपयोगी रहती है । साथ ही अपने वांछित अधिकारों के लिए खड़ा होना सीखें और आवश्यकता पड़ने पर न करना सीखें । व्यावहारिक पृष्ठभूमि पर परस्पर सकारात्मक संबंध बनाएँ और नकारात्मकता से बचें । साथ ही अपने संघर्ष की प्रेरक कहानी लिखें ।
अपनी संघर्षगाथा को कलमबद्ध करें तथा अपने विजयी अभियान के अनुभवों को जरूरतमंदों के साथ शेयर करें ।
यह भी आत्मसम्मान बढ़ाने वाला एक उपक्रम साबित होगा । अपनी तरह संघर्षशील व्यक्तियों के बारे में सोचें और उनके लिए समाधान का सूत्र बनने का प्रयास करें ।
छोटे -छोटे कदम बढ़ाये
रोज छोटे – छोटे कदमों के साथ आगे बढ़ें । एक चार्ट में अपनी प्रगति का लेखा – जोखा रखें । इसमें कौन – सी खामी रह रही है , उसको चिह्नित करें । रोज नई चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ें । आप चाहें तो ऐसी परिस्थितियों का स्वयं सृजन कर सकते हैं ,
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